Top प्राचीन भारत का इतिहास Secrets

गहड़वाल वंश · गोविन्द चन्द्र · विजय चन्द्र · जयचंद्र · चन्द्रदेव गहड़वाल

वस्तुनिष्ठ सामान्य ज्ञान प्राचीन भारतीय इतिहास

गयासुद्दीन तुग़लक़, तुग़लक़, फ़िरोज़ शाह तुग़लक़, मुहम्मद बिन तुगलक आदि ये सभी इस वंश के प्रमुख शासक थे।

हालांकि इतने प्राचीन होने के कारण पूरी तरह जनरल नॉलेज बिना त्रुटि के इन सब को एक सूत्र में पिरोना तो असंभव है, लेकिन फिर भी बहुत हद तक प्रयास किया जा सकता है. 

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प्राचीन काल के प्रमुख राजवंश संस्थापक एवं राजधानी

इसके बाद अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति का गठन किया गया. इस समित के मुख्य उद्देश्य शारीरिक और मानसिक गुणों का विकास, बेहतर और शांतिपूर्ण दुनिया और खेल के माध्यम से दोस्ती की भावना जगाना, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सद्भावना पैदा करना और दुनिया भर के एथलीटों को एक साथ लाना था.

उत्तर भारत में हूणों के आगमन के कारण इस अवधि के दौरान मध्य एशिया और ईरान में प्रवास हुआ। कई राजवंशों के बीच युद्ध के परिणामस्वरूप उत्तर में कई छोटे राज्यों का गठन हुआ।

मजमूद ग़ज़नवी के आक्रमण के समय बुन्देलखंड में चंदेलों का शासन था। उस समय बुंदेलखण्ड की राजधानी खजुराहो थी। त्रिपुरी के कलचुरी वंश

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पुनर्जागरण एक फ्रेंच शब्द (रेनेसी) है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘फिर से जागना’ इसे ‘नया जन्म अथवा ‘पुनर्जन्म’ भी कह सकते हैं। परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से इसे मानव समाज की बौद्धिक चेतना और तर्कशक्ति का पुनर्जन्म कहना ज्यादा उचित होगा। प्राचीन यूनान और रोमन युग में यूरोप में सांस्कृतिक मूल्यों का उत्कर्ष हुआ था। परन्तु मध्यकाल में यूरोपवासियों पर चर्च तथा सामान्तों का इतना अधिक प्रभाव बढ़ गया था कि लोगों की स्वतंत्र चिन्तन-शक्ति तथा बौद्धिक चेतना ही लुप्त हो गई। लैटिन तथा यूनानी भाषाओं को लगभग भुला दिया गया। शिक्षा का प्रसार रुक गया था। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण यूरोप सदियों तक गहन अन्धकार में दबा रहा। ईश्वर चर्च और धर्म मे के प्रति यूरोपवासियों की आस्था चरम बिन्दु पर पहुँच गई थी। धर्मशास्त्रों में जो कुछ सच्चा झूठा लिखा हुआ अथवा चर्च के प्रतिनिधि जो कुछ बतलाते थे, उसे पूर्ण सत्य मानना पड़ता था। विरोध करने पर मृत्युदण्ड दिया जाता था। इस प्रकार लोगों के जीवन पर चर्च का जबरदस्त प्रभाव कायम था। चर्च धर्मग्रन्थ के स्वतन्त्र चिन्तन और बौद्धिक विश्लेषण का विरोधी था। सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र में भी चर्च और सामन्त व्यवस्था लोगों को जकड़े हुए थी। किसान लोग सामन्त की स्वीकृति के बिना मेनर (जागीर) छोड़कर नहीं जा सकते थे।

उपनिषद, दार्शनिक ग्रंथों का एक संग्रह, इस अवधि के दौरान लिखा गया था और इसमें वास्तविकता की प्रकृति, स्वयं और मानव अस्तित्व के अंतिम लक्ष्य के बारे में विचार शामिल हैं।

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खनन के परिणामस्वरूप प्राप्त टूटे-फूटे बर्तन, मूर्तियां एवं अन्य अवशेष भी प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन करने के दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण है. इन बर्तनों और मूर्तियों का भी बहुत बड़ा ऐतिहासिक महत्व है.

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